झक्कियाँ

ये दिल जब किसी पर आता है,
तो मुझ जैसा टुच्चा इंसान भी,
                    शायर बन जाता है |


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उनसे हर मुलाकात के बाद,
टुच्चे शेरो की प्रेरणा पाता हूँ मैं,
और उनसे हर मुलाकात के बाद,
नए-नए टुच्चे शेर बनाता हूँ मैं,
क्योंकिं,
वो बंदा ही बड़ा टुच्चा है,
जिससे  होती है मुलाकात,
अरे भई,
वो कोई और नहीं,
मेरे घर में,
मेरा अपना आईना है |


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जूनून-ए-इश्क़ में हमनें,
ऐसी-ऐसी टुच्ची कवितायेँ,
                            लिख डाली,
कि जब भी पढ़ने बैठते है,
तो दिल ऐसे रोता है,
जैसे बाग़ की,
मुरझाई कलियों को देखकर,
            रोता है बाग़ का माली |


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क्या हमारी,
दास्तान-ए-मोहब्बत,
ख़त्म हो चुकी है,
नहीं, वह तो कुछ पलों के लिए,
हमारे दिलों में खो चुकी है,

उन पलों के लिए,
जो मैं भूल से भूल गया हूँ,

ये ज़ालिम भूलने की आदत भी,
एक बहुत बड़ी भूल है,
इस भूलने की आदत के कारण,
मैं कई भूलों में फंसा हूँ,

न  खुलकर  रोया हूँ,
बंद होकर हंसा हूँ,

इसलिए ए डिम्पल,
इस भूलने की आदत को त्याग,
अपनी बेसुध नींद से जाग,

वर्ना,
ये मोहब्बत जो,
कुछ पलों के लिए सोई है,
सदा के लिए सो जाएगी |
और फिर डिम्पल बेटा,
ज़िन्दगी भर _ _ _ _ तेरे हाथ ना आएगी ||


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तेरे एक इशारे पर हम,
          सारी दुनिया लुटा देंगे |
तू गुजरे जिस राह से उसपे,
ज़मादार से कहके,
                 झाड़ू लगवा देंगे ||


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तुम्हारी चाहत ने, तुम्हारे प्यार ने,
तेरे चेहरे ने हमें, दीवाना बना डाला,

ये सितम क्या कम था,
जो खुदा ने,
दुनिया भर के ग़मों को समेटकर,
जब कुछ न बन सका, तो मेरा दिल बना डाला,

खैर चलो, अब अगर,
बना ही दिया है,
तो इसी से काम चलाना पड़ेगा |
आखिर वो खुदा है,
उससे पंगा लेना बड़ा महंगा पड़ेगा |


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नींद लोक के स्वप्न रथ पर,
सज-धज कर खड़ी हो तुम,
और शायद मेरा ही,
इंतजार कर रही हो तुम,

जल्दी से आओ, इक दिन तो है,
तुम्हे मेरी ज़िन्दगी में आना,
फिर किसलिए,
आखिर किसलिए, इतना तड़पाना,

जल्दी करो वर्ना ऐसा न हो,
      कोई मेरा यह स्वपन तोड़ दे |
सुबह होने वाली है,
कोई मुझे पकड़कर न झिंझोड़ दे ||


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तुम्हारी याद में,
एक शेर लिखने को जी चाहता है,
मगर,
जो ख़ुद शेर हो,
वह अपने सामने,
किसी दुसरे शेर को,
कैसे है टिकने दे सकता,
इसलिए जाओ मैं शेर नहीं लिखता ||


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तुम्हारे कद्दू जैसे,
गोल चेहरे की याद आती है हमें,

तुम्हारी काली-काली जामुन जैसी,
आँखों  की  बहुत  याद  आती  है  हमें,

तुम्हारे लाल टमाटर जैसे,
होठों  की  याद  आती  है  हमें,

तुम्हारी,
भिंडी जैसी लम्बी-लम्बी पतली,
उँगलियों  की  याद  आती  है  हमें,

क्या मैं इन्हें कभी भुला पाऊँगा,
नहीं, कभी भी नहीं,

क्योंकि मेरी गृह-वाटिका,
         सब्जी मंडी के अंडर आती है |
और सब्जियों पर नज़र पड़ते ही,
     मुझे तुम्हारी,
          सिर्फ तुम्हारी याद आती है ||


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