Tuesday 28 May 2013

- नक़ाब

इक  पल  में  कितने  रूप  बदलते  है  लोग  यहाँ |
नक़ाब   पर   नक़ाब   ओढे   रहते  है  लोग  यहाँ ||

निकलता   है   प्यार   बाटनें   को   जो   भी   शख्स ,
नफ़रत भरी मुस्कान से स्वागत करते है लोग यहाँ |

मोहब्बत इक नियामत -ए - ख़ुदा  है, सब कहते है,
आशिकों  को  फिर  भी  दीवाना कहते है लोग यहाँ |

झांक  नही  पाए, अभी  ठीक  से, दिल  में  अपने,
चाँद  पर  रहने  की  बात  मगर करते है लोग यहाँ |

दो  सच्चे  प्रेमी  जिन्हें  गुनगुना  भी  नही  सकते,
जीस्त-ए-साज़ पर ऐसे नगमें गाते  है  लोग यहाँ |

जो  वहशीपन छुपा है इनके अपने दिल में अर्पण,
वैसा   ही   अक्स   ओरों   में   देखते   है लोग यहाँ |

                                               ----- "अर्पण" (3 jan. 1998)





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