कल्पनाओ के फूल जब खिलने लगे,
घने वीराने में भी जब,
कोई खूबसूरत मंजर नज़र आने लगे,
हवाओं में जब उँगलियों से,
तस्वीर बनाने को जी चाहे,
तन्हा तनहाइयों में जब, आस-पास,
जाना-अनजाना, साया महसूस हो,
ज़बां से निकले लफ्ज़ जब,
शक्ल, ग़ज़ल की अख्तियार करने लगे,
गर्मी की ठंडी-ठंडी पुरवाई, जब,
कोई धुन गुनगुनाती सी लगे,
गम भी जब,
मीठा-मीठा दर्द जगाने लगे,
अकेलेपन से जब,
गले मिलना चाहो,
दोस्तों के बीच रहते हुए भी,
जब, बेख़ुद, तन्हा से रहने लगो,
हर प्यार करने वाला शख्स,
जब, अपना अज़ीज़ लगने लगे,
इक मखसूस नाम सुनकर,
जब,
होश हवा में परवाज़ करने लगे,
ख़ामोशी से जब तुम,
बहुत सी बातें करने लगो,
किसी के गम, अपनी खुशियों से भी,
प्यारे जब लगन्रे लगे,
तब,
समझो कि ज़माने की नज़र में,
तुम बेकार हो गये,
और किसी के इश्क़ में गिरफ्तार हो गये,
फिर,
प्यार या ज़िन्दगी,
किसी एक को अलविदा कह देना,
और गर,
टूटना न चाहो,
तो शायरी से दिल लगा लेना ||
---- "अर्पण" (6 jan. 1998)
घने वीराने में भी जब,
कोई खूबसूरत मंजर नज़र आने लगे,
हवाओं में जब उँगलियों से,
तस्वीर बनाने को जी चाहे,
तन्हा तनहाइयों में जब, आस-पास,
जाना-अनजाना, साया महसूस हो,
ज़बां से निकले लफ्ज़ जब,
शक्ल, ग़ज़ल की अख्तियार करने लगे,
गर्मी की ठंडी-ठंडी पुरवाई, जब,
कोई धुन गुनगुनाती सी लगे,
गम भी जब,
मीठा-मीठा दर्द जगाने लगे,
अकेलेपन से जब,
गले मिलना चाहो,
दोस्तों के बीच रहते हुए भी,
जब, बेख़ुद, तन्हा से रहने लगो,
हर प्यार करने वाला शख्स,
जब, अपना अज़ीज़ लगने लगे,
इक मखसूस नाम सुनकर,
जब,
होश हवा में परवाज़ करने लगे,
ख़ामोशी से जब तुम,
बहुत सी बातें करने लगो,
किसी के गम, अपनी खुशियों से भी,
प्यारे जब लगन्रे लगे,
तब,
समझो कि ज़माने की नज़र में,
तुम बेकार हो गये,
और किसी के इश्क़ में गिरफ्तार हो गये,
फिर,
प्यार या ज़िन्दगी,
किसी एक को अलविदा कह देना,
और गर,
टूटना न चाहो,
तो शायरी से दिल लगा लेना ||
---- "अर्पण" (6 jan. 1998)
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