किस कदर अजीब रिश्ता है ये |
कभी हँसता कभी रिसता है ये ||
अपनी ही अन्दर छुपा लूँ कहीं,
आँखों को यूँ भींचता है ये |
गम और ख़ुशी का लेकर पानी,
मेरी ज़िन्दगी का पौधा सींचता है ये |
फैलता है कभी, कभी सिकुड़ता है,
रबड़ जैसे दिल को खींचता है ये |
जिस रोज़ तुमसे मिलना नहीं होता,
रुई जैसे ख़्वाबों को पींजता है ये |
अपनी आँख का पानी करके अर्पण,
मेरी अभिलाषा को सींचता है ये |
----"अर्पण' (19 jan. 2000)
कभी हँसता कभी रिसता है ये ||
अपनी ही अन्दर छुपा लूँ कहीं,
आँखों को यूँ भींचता है ये |
गम और ख़ुशी का लेकर पानी,
मेरी ज़िन्दगी का पौधा सींचता है ये |
फैलता है कभी, कभी सिकुड़ता है,
रबड़ जैसे दिल को खींचता है ये |
जिस रोज़ तुमसे मिलना नहीं होता,
रुई जैसे ख़्वाबों को पींजता है ये |
अपनी आँख का पानी करके अर्पण,
मेरी अभिलाषा को सींचता है ये |
----"अर्पण' (19 jan. 2000)
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