आसान सा रास्ता है बदनाम होने का यारों |
ज्यादा कुछ नही फ़कत मोहब्बत कर लो ||
मोहब्बत तो आखिर मोहब्बत ही है,
बावफा न सही, बेवफा ही से दिल लगा लो |
भूल जाओ जब सजदा करना मस्जिद में,
यार का नाम,लिख के हाथ पे,माथे से लगा लो |
इज़्तिराब जब बढने लगे हद से ज्यादा,
हाथ दिल पे रख के, कोई ग़ज़ल लिख डालो |
विश्वास हमेशा अर्पण में रखना,हुसूल में नही,
सच्चा प्यार गर किया है, तो निभाना भी जान लो|
--- "अर्पण" (8 jan. 1998)
इज़्तिराब = व्याकुलता
हुसूल = इश्क़ का हासिल
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