Wednesday 22 May 2013

- अर्पण

आसान सा रास्ता है बदनाम होने का यारों |
ज्यादा  कुछ  नही फ़कत मोहब्बत कर लो ||

मोहब्बत तो आखिर मोहब्बत ही है,
बावफा न सही, बेवफा ही से दिल लगा लो |

भूल जाओ जब सजदा करना मस्जिद में,
यार का नाम,लिख के हाथ पे,माथे से लगा लो |

इज़्तिराब जब बढने लगे हद से ज्यादा,
हाथ दिल पे रख के, कोई ग़ज़ल लिख डालो |

विश्वास हमेशा अर्पण में रखना,हुसूल में नही,
सच्चा प्यार गर किया है, तो निभाना भी जान लो|

                                                           --- "अर्पण" (8 jan. 1998)


इज़्तिराब =  व्याकुलता
हुसूल      =  इश्क़ का हासिल 

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