मेरे सपने !


" थोडा सा पानी "
25 Feb. 2000


कल रात मुझे एक सपना आया --

मुझे पता नहीं कहाँ से (शायद तक़दीर से), एक बोलने वाली मछली मिल गई | मैंने उसे अपनी अंजुली में जितना पानी आया उसी में रख लिया | हालाँकि वो बड़े तालाब में रहने वाली मछली थी मगर उसने मेरी अंजुली के थोड़े से पानी में ही रहना सीख लिया और मुझसे कोई शिकायत नहीं की |

हर रोज़ मैं उससे ढेरों बातें करता था, जहाँ भी मैं जाता उसे साथ लेकर जाता | वो भी मुझसे ढेरों बातें करती थी और कई बार तो ऐसी बातें भी जिनसे मैं बोर हो जाता था| मगर ये मैं उसे ज़ाहिर नहीं होने देता था| वो कहती - ये लाकर दो, वो लाकर दो ! और मैं पागलों की तरह उसके लिए सब-कुछ करता था, जो भी मुझसे बन पड़ता, और कभी-कभी तो उससे भी कहीं ज्यादा |

कभी-कभी मैं सोचता था कि ये इतने बड़े - खुले तालाब में रहने वाली मछली इस थोड़े से पानी में कैसे रह रही है | मैंने एक-दो बार उससे पूछने की कोशिश भी की मगर उसने बातों का रुख पड़े प्यार से कहीं और मोड़ दिया | वो लम्हे मेरी ज़िन्दगी के शायद सबसे ज्यादा हसीन लम्हे थे | उन दिनों  उसकी आँखों में इतना प्यार, इतना अपनापन देखा कि अपनी किस्मत से मुझे ख़ुद ईर्ष्या होने लगी |

मगर कुछ ही दिनों बाद मेरी नज़र शायद ख़ुद मुझे लग गई | एक दिन मैं और मेरी प्यारी मछली आपस में बातें कर रहे थे | लेकिन वो उस दिन कुछ चुप-चुप थी | मैंने उससे पूछा भी मगर उसने टाल दिया | तभी वो अचानक मेरे हाथ से फिसल गई और पास ही बह रही नदिया की धारा में जा गिरी | मैं उसे पकड़ने के लिए कभी इधर हाथ फैलाता कभी उधर मगर वो पानी के बहाव के साथ-साथ बही जा रही थी और लगातार मुझसे दूर होती जा रही थी | मेरी हर संभव कोशिश के बावजूद भी वो मुझसे दूर होती गई और आखिर में जाकर उसी खुले बड़े तालाब में चली गई |

मैं कई दिनों तक उसी किनारे पर बैठा रहा इस उम्मीद में कि वो दुबारा किनारे पर आएगी मुझसे मिलने के लिए, मेरा हाथ थामने के लिए | वो कैसे रहेगी मेरे बगैर - आखिर कितना प्यार करती थी वो मुझे | तो क्या हुआ ? अगर उसे इतना बड़ा खुला तालाब दुबारा मिल गया | जहाँ वो आसानी से तैर सकती थी, जहाँ चाहे वहां घूम-फिर सकती थी| नहीं-नही वो वापिस लौट आएगी !

एक के बाद एक दिन गुजरते गए मगर वो नही आयी| क्यों वो अचानक, एकदम से, मुझे छोड़कर चली गई ? मुझसे कुछ कहा-सुना भी नहीं | 

क्या अब वो मेरी अंजुली के थोड़े से पानी में नहीं रहना चाहती थी ? क्या उसे अब ये लगने लगा था कि मेरी अंजुली के थोड़े से पानी में रहकर उसने भूल की थी? 

क्या वो प्यार.......

क्या अब उसे ये थोडा सा पानी..........................  !!

                                                                                                                                                      -अर्पण 



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" जुगनू और मैं "
5 Oct. 1999 

आपने अँधेरी रात में जुगनुओ को चमकते हुए जरूर देखा होगा | जुगनू थोड़ी देर के लिए चमकते है फिर देर तक अन्धेरें में खोये रहते है | और फिर थोड़ी देर बाद चमकते है | दूसरी बार जब वो चमकते है तो किसी और दिशा में चमकते है, दूसरी बार जुगनू को चमकते हुए देखने के लिए हमें चारो तरफ़ बराबर नज़र रखनी पड़ती है |


ऐसे ही एक रात, मैं बैठा जुगनुओं को देख रहा था | तभी बिल्कुल मेरी आँखों के आगे एक जुगनू चमका और फिर ग़ायब हो गया | बहुत देर बाद जब वो दुबारा चमका तो मैंने उससे पूछा - यार ! तुम इतनी देर तक अन्धेरें में क्यूँ खोये रहते हो, हर वक़्त चमकते क्यूँ नहीं रहते? जुगनू बोला - दोस्त ! ये तो प्रकृति का नियम है, हमें एक बार में सिर्फ एक रोशनी की किरण मिलती है | दूसरी बार रोशनी की किरण पाने के लिए हमें अंधेरों की खाक छाननी पड़ती है, मारा-मारा फिरना पड़ता है., इस दिशा से उस दिशा, तब कहीं जाकर एक किरण मिलती है रोशनी की | 


मैंने सोचा - सच में, यही हाल खुशियों का है, ज़िन्दगी के तमाम दुखों के बीच हमें लगातार खुशियाँ तलाशते रहना चाहिए | कब तक बचेंगी खुशियाँ ? कहीं न कहीं जाकर तो पकड़ में आएँगी ! आप यकीन मानिए, खुशियाँ  हमें कहीं भी, कभी भी मिल सकती है लेकिन इसके लिए जरुरी है कि हम लगातार दुखों को टटोलते रहें, उन्हें उलट-पुलट कर देखते रहें कि शायद कहीं छोटी-मोटी कोई ख़ुशी पड़ी हो | और आप देखना, आपको किसी न किसी कोने में, ख़ुशी पड़ी मिल जाएगी |


फिर मैंने जुगनू से पूछा - तुम्हे निराशा नहीं होती कि रोशनी सिर्फ थोड़ी देर के लिए और अंधेरों का सिलसिला कितना लम्बा ! ये सब तुम्हे निराश नहीं करता ?


जुगनू बोला - नहीं, मैं निराश नहीं होता | हाँ ये सच है कि रोशनी हमें थोड़ी देर के लिए मिलती है मगर इसमें निराश होने वाली कोई बात नहीं | असल में सच तो ये है कि गर ये अन्धेरें न होते तो हमारी रोशनी की किरण कैसे दिखाई देती |


सच में, इंसानी फितरत है कि वो हमेशा ज्यादा की उम्मीद रखता है, उसकी इच्छाएँ कभी पूरी होती | जब भी कोई थोड़ी सी ख़ुशी मिलती है तो हम चाहते है कि और मिलनी चाहिए थी, ये तो बहुत कम है | और हम दुखों को हमेशा कोसते है | मगर हम ये नहीं सोचते कि अगर ये दुःख न आते तो हमें खुशियों से जो ख़ुशी मिलती है, उसे हम कैसे महसूस कर पाते |




-अर्पण 


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