"तेरे प्यार का अमृत"
23Aug. 1999
जहाँ बादल तुम्हारे मन की तरह, कभी बिल्कुल शान्त, खामोश, जैसे इस वादी की ज़मीं से कोई रिश्ता ही नहीं, और कभी प्यार की बरसात करने को इतने आतुर कि सर से पाँव तक भिगो डालते है, मुझे और इस वादी को भी | और बरसात के बाद इस वादी की मिट्टी से वो खुशबू निकलती है जो रूह को अन्दर तक इस कदर सकून पहुंचाती है कि रूह भी बेताबी की सी हालत में बाहर निकलती है - तुम्हारे प्यार की बरसात में नहाने को | और फिर इस बरसात का पानी अपनी छोटी सी अंजुली में भरकर होंठों से लगाकर पीती है और आसमां की तरफ मुंह उठाकर कहती है ----
उसके प्यार का अमृत पी लिया,
अब तू कुछ भी कर ले ख़ुदा,
मैं मर नहीं सकती |
जो ज़िन्दगी तूने दी थी, वो तो,
मैं कब की उस पर वार चुकी,
अब जो जी रही हूँ, उसकी इनायत है,
ये बात मैं उसे भी कब की बता चुकी,
इससे मैं मुकर नहीं सकती |
अब तू कुछ भी कर ले ख़ुदा,
मैं मर नहीं सकती |
इक उम्र जी गयी अकेले जाने कैसे,
बस इक साँस थी जो आती-जाती थी,
और अब तुम हो, जो मेरे पास हो,
वर्ना तन्हाई, तन्हाई में साथ निभाती थी,
जिसका मैं ज़िक्र कर नहीं सकती |
अब तू कुछ भी कर ले ख़ुदा,
मैं मर नहीं सकती |
अब इस वादी में जीने की खवाहिश है,
लेकिन जीने का सामान तेरे पास है,
मेरे पास फ़कत, मेरे सादे प्यार का,
पहला और शायद आखिरी अहसास है,
जिसको मैं बयाँ कर नहीं सकती |
अब तू कुछ भी कर ले ख़ुदा,
मैं मर नहीं सकती |
तुम चाहो तो कुछ दिन और जी लुंगी,
छोटा सा घर मिले, गर इस वादी में,
यहीं बने आशियाँ मेरी मोहब्बत का,
और कब्र भी बने, तो इसी वादी में |
इस तरह मैं, मर नही सकती |
उसके प्यार का अमृत पी लिया,
अब तू कुछ भी कर ले, खुदा,
मैं मर नही सकती ||
-अर्पण
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" ख़वाब "
21 Oct. 1999
बिना चाँद के चाँदनी लुटाते हो,
बिन बुलाये नीदों में आते हो ,
खुली रखता हूँ जब आँखें,
तो आके पलकों पे ठहर जाते हो,
मेरी दुनिया के महताब हो |
ख़वाब तुम सचमुच ख़वाब हो ||
" ख़वाब "
21 Oct. 1999
तुम्हे पहली बार देखा तो लगा जैसे सोते में कोई हसीन ख़वाब देख लिया है | फिर तुमसे बातें की, तुम्हे जाना तो लगा वाकई तुम ख़वाब हो | फिर तुम्हारे और नजदीक आया तो लगा बिना बेखुदी के मैं ख़वाब देख रहा हूँ |
फिर जब सपनों की कोख में, तेरे प्यार के अंश को सांसे लेते देखा तो लगा कि ख़वाब बहुत छोटे होते है, उनमें मेरी ख़ुशी, मेरे अहसास, मेरे जज़्बात नहीं समा पा रहे है |
फिर जब सपनों की कोख में, तेरे प्यार के अंश को सांसे लेते देखा तो लगा कि ख़वाब बहुत छोटे होते है, उनमें मेरी ख़ुशी, मेरे अहसास, मेरे जज़्बात नहीं समा पा रहे है |
सचमुच गर ये ख़वाब न होते तो मैं तुम्हें कैसे महसूस कर पाता, कैसे मैं बिना किसी अभिलाषा के, बिना किसी आरजू के जी पाता |
ख़वाब तुम वाकई ख़वाब हो |
जो ख़वाब मैंने तुम्हारे लिए देखा है, उसके पूरे होने की मैंने शर्त नहीं रखी है क्योंकिं मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि ये ख़वाब मैंने तक़दीर से छुप कर देखा है .......
ख़वाब तुम वाकई ख़वाब हो |
जो ख़वाब मैंने तुम्हारे लिए देखा है, उसके पूरे होने की मैंने शर्त नहीं रखी है क्योंकिं मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि ये ख़वाब मैंने तक़दीर से छुप कर देखा है .......
हक़ीकत में देखा ख़वाब हो |
ख़वाब तुम सचमुच ख़वाब हो ||
बिना चाँद के चाँदनी लुटाते हो,
बिन बुलाये नीदों में आते हो ,
खुली रखता हूँ जब आँखें,
तो आके पलकों पे ठहर जाते हो,
मेरी दुनिया के महताब हो |
ख़वाब तुम सचमुच ख़वाब हो ||
जो नहीं है वो बन जाते हो,
अंधेरों में पेहम रोशनी लुटाते हो,
उन्होंने जबां तक नहीं खोली अभी,
तुम इकरार का विश्वास जताते हो,
सहरा में मृगतृष्णा ख़ुद आप हो |
ख़वाब तुम सचमुच ख़वाब हो ||
तुमसे ज़िन्दगी, ज़िन्दगी लगती है,
वीरानी तेरी महफ़िल सी लगती है,
भाग जाता हूँ जब सबसे दूर,
तू कहीं नजदीक खड़ी लगती है,
मैं हूँ यानि की आप हो |
ख़वाब तुम सचमुच ख़वाब हो ||
अब तो बस यही सपना है,
कि तुम्हे यूँ ही सपनों में देखूं,
मैं हो जाऊं चाहे ख़ुद से बेगाना,
मगर हर पल तुझे अपनों में देखूं,
तुम सच हो मगर ख़वाब हो |
ख़वाब तुम सचमुच ख़वाब हो ||
कि तुम्हे यूँ ही सपनों में देखूं,
मैं हो जाऊं चाहे ख़ुद से बेगाना,
मगर हर पल तुझे अपनों में देखूं,
तुम सच हो मगर ख़वाब हो |
ख़वाब तुम सचमुच ख़वाब हो ||
-अर्पण
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" जलन "
(18 July 1999 )
कितना सुख मिलता है मुझे,
तुम्हारे रूठ जाने पर तुम्हे मनाने में,
तुम्हारे अनमोल आँसू पोंछने में,
तुम्हे हँसता हुआ देखकर,
तुम्हे अपनी भी खुशियाँ देने में,
तुम्हे देखकर, तुमसे बातें करके,
तुम्हे छुकर, तुम्हे महसूस करके,
तुम्हारे मुंह से यह सुनकर,
कि - तुम सिर्फ मेरे हो !
तुम्हारे मुंह से यह सुनकर,
ऐसा सुख दुनिया में कहीं और नहीं |
इसके बिना मेरी ज़िन्दगी कुछ नही ||
-अर्पण
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एक रात...
तुम्हारे बारे में सोच रहा था | सोच रहा था कि कैसे तुम हंसती हो, कैसे नाराज़ होती हो, कैसे बात-बात में तुम्हारे आँसू तुम्हारी आँखों का साथ छोड़ देते है | कैसे तुम बातें करती हो, कैसे प्यार से मेरे गले.......
यही सब सोच रहा था कि बादलों के पीछे से चाँद निकलता दिखाई पड़ा | जाने क्यों उसने देखकर भी मुझे अनदेखा कर दिया और नज़र बचाकर चलने लगा | बड़ा अजीब सा व्यवहार था | थोड़ी देर मैंने सोचा और जाने क्या सोचकर मैंने उसे आवाज़ दी | वो रुक तो गया परंतु मेरी तरफ आया नहीं |
तब मैं ही उसकी तरफ चल दिया और पूछा - क्या बात है मेरे दोस्त, क्या नाराज़ हो मुझसे ?
बड़ा बेरूखा सा जवाब मिला - तुम्हे क्या फर्क पड़ता है !
मुझे कुछ समझ नहीं आया मगर इतना जरूर समझ गया कि वाकई ये मुझसे नाराज़ है | मैंने उसे मनाने के इरादे से कहा - क्या बात है चाँद, आज तो तुम्हारा चेहरा कुछ ज्यादा ही चमक रहा है, क्या नूर निकल रहा है तुम्हारे रुख से, हर जगह, हर तरफ तुम्हारा ही नूर फैला हुआ है | हर नज़र में तुम ही तुम हो !
बड़ी व्यंगात्मक मुस्कान के साथ, मेरी आँखों में आँखें डालकर उसने कहा - क्यों झूठ बोलते हो, तुम्हारी आँखों में तो कोई और ही चाँद बसा है | तुम्हारे रोम-रोम से उसी चाँद की चाँदनी फूट रही है, फिर तुम्हे मेरी क्या जरुरत ?
मुझसे कुछ कहते न बन पड़ा | वो वापिस मुड़ा और अपनी राह चल दिया | मैंने उसे रोकने के लिए हाथ उठाया मगर मेरी आवाज़, मेरे ही अंदर न जाने कहाँ खो गयी और मेरा हाथ उठा का उठा रह गया........
तुम्हारे रूठ जाने पर तुम्हे मनाने में,
तुम्हारे अनमोल आँसू पोंछने में,
तुम्हे हँसता हुआ देखकर,
तुम्हे अपनी भी खुशियाँ देने में,
तुम्हे देखकर, तुमसे बातें करके,
तुम्हे छुकर, तुम्हे महसूस करके,
तुम्हारे मुंह से यह सुनकर,
कि - तुम सिर्फ मेरे हो !
तुम्हारे मुंह से यह सुनकर,
कि - मैं सिर्फ तुम्हारी हूँ !
ऐसा सुख दुनिया में कहीं और नहीं |
इसके बिना मेरी ज़िन्दगी कुछ नही ||
-अर्पण
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