कितनी मुसीबत है ज़िंदगानी |
हर वक़्त आँख में पानी |
जीस्त-ए-तल्खियों ने इतना सताया,
सूख गया आँख का पानी |
ये कैसा प्यार है तुम्हारा,
हँसता हूँ तब भी आँख में पानी |
समझता है कौन दिल की बात,
इंसानी जज़्बात बिल्कुल बेमानी |
झड़ गये सभी पत्ते प्यार के,
सूखे पेड़ सी है मेरी ज़िंदगानी |
सुबक - सर बनके ये पाया,
वो करता रहा अपनी मनमानी |
---"अर्पण " (31 जनवरी 2000)
हर वक़्त आँख में पानी |
जीस्त-ए-तल्खियों ने इतना सताया,
सूख गया आँख का पानी |
ये कैसा प्यार है तुम्हारा,
हँसता हूँ तब भी आँख में पानी |
समझता है कौन दिल की बात,
इंसानी जज़्बात बिल्कुल बेमानी |
झड़ गये सभी पत्ते प्यार के,
सूखे पेड़ सी है मेरी ज़िंदगानी |
सुबक - सर बनके ये पाया,
वो करता रहा अपनी मनमानी |
---"अर्पण " (31 जनवरी 2000)
जीस्त-ए-तल्खियों = जीवन की कठिनाइयाँ, जीवन की परेशानियाँ
सुबक-सर = विनम्र बन के, नीचा रह कर
सुबक-सर = विनम्र बन के, नीचा रह कर
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