यूँ इक मुद्दत जुदा होकर तुझसे |
करने लगा हूँ और प्यार तुझसे ||
न होकर भी, पास थी तुम मेरे,
कहूँ मैं क्या और तुझसे |
हर वक़्त करती है मुझसे बातें,
तेरी तस्वीर चाहती है मुझे ज्यादा तुझसे |
तन्हाई में तो खैर तुम थी ही,
भीड़ में भी मुखातिब रहा तुझसे |
इस हिज्र का सिलसिला यूँ ख़त्म करूँ,
तू मिले, तो चुरा लूँ, तुझको, तुझसे ||
....."अर्पण" (5 jan. 2000 )
करने लगा हूँ और प्यार तुझसे ||
न होकर भी, पास थी तुम मेरे,
कहूँ मैं क्या और तुझसे |
हर वक़्त करती है मुझसे बातें,
तेरी तस्वीर चाहती है मुझे ज्यादा तुझसे |
तन्हाई में तो खैर तुम थी ही,
भीड़ में भी मुखातिब रहा तुझसे |
इस हिज्र का सिलसिला यूँ ख़त्म करूँ,
तू मिले, तो चुरा लूँ, तुझको, तुझसे ||
....."अर्पण" (5 jan. 2000 )
No comments:
Post a Comment