" कुछ रिश्ते "
कुछ रिश्ते सिर्फ रिश्ते है,
कुछ रिश्ते सिर्फ रिसते है|
कुछ रिश्ते पहाड़ से अटल है,
कुछ रिश्ते नम आँख से सजल है|
कुछ रिश्ते कतरा कर निकल जाते है,
कुछ रिश्ते आँसू की तरह,
गम में भी, ख़ुशी में भी निकल आते है|
कुछ रिश्ते शमां की तरह,
सारी - सारी रात जलते है,
कुछ रिश्ते सुबह का ख़वाब बनकर, नींदों में मचलते है |
कुछ रिश्ते हाथ से,
रेत की तरह फिसल जाते है,
कुछ रिश्ते बिन बुलाये हर मोड़ पर टकराते है |
कुछ रिश्ते दूर होकर भी पास है,
जैसे किसी मुफ़लिस की आस है |
मगर,
तुझमे और मुझमे जाने कैसा रिश्ता है,
तुम अजनबी भी नही,
मुझे जानते भी नहीं,
हर लम्हा मेरे साथ रहते हो,
और मुझे पहचानते भी नहीं |
इस रिश्ते को क्या कहूँ,
तुम ही कुछ बताओ,
या फिर चलो,
ये फैसला वक़्त पर छोड़ दे |
वो चाहे जिधर,
इस रिश्ते का मुंह मोड़ दे ||
-अर्पण (19-22 Dec. 1998)
कुछ रिश्ते सिर्फ रिश्ते है,
कुछ रिश्ते सिर्फ रिसते है|
कुछ रिश्ते पहाड़ से अटल है,
कुछ रिश्ते नम आँख से सजल है|
कुछ रिश्ते कतरा कर निकल जाते है,
कुछ रिश्ते आँसू की तरह,
गम में भी, ख़ुशी में भी निकल आते है|
कुछ रिश्ते शमां की तरह,
सारी - सारी रात जलते है,
कुछ रिश्ते सुबह का ख़वाब बनकर, नींदों में मचलते है |
कुछ रिश्ते हाथ से,
रेत की तरह फिसल जाते है,
कुछ रिश्ते बिन बुलाये हर मोड़ पर टकराते है |
कुछ रिश्ते दूर होकर भी पास है,
जैसे किसी मुफ़लिस की आस है |
मगर,
तुझमे और मुझमे जाने कैसा रिश्ता है,
तुम अजनबी भी नही,
मुझे जानते भी नहीं,
हर लम्हा मेरे साथ रहते हो,
और मुझे पहचानते भी नहीं |
इस रिश्ते को क्या कहूँ,
तुम ही कुछ बताओ,
या फिर चलो,
ये फैसला वक़्त पर छोड़ दे |
वो चाहे जिधर,
इस रिश्ते का मुंह मोड़ दे ||
-अर्पण (19-22 Dec. 1998)
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