Friday 9 November 2012

कुछ रिश्ते

" कुछ रिश्ते "

कुछ रिश्ते सिर्फ रिश्ते है,

कुछ रिश्ते सिर्फ रिसते है|

कुछ रिश्ते पहाड़ से अटल है,

कुछ रिश्ते नम आँख से सजल है|

कुछ रिश्ते कतरा कर निकल जाते है,

कुछ रिश्ते आँसू की तरह,
गम में भी, ख़ुशी में भी निकल आते है|

कुछ रिश्ते शमां की तरह,

सारी - सारी रात जलते है,
कुछ रिश्ते सुबह का ख़वाब बनकर, नींदों में मचलते है |

कुछ रिश्ते हाथ से,

रेत की तरह फिसल जाते है,
कुछ रिश्ते बिन बुलाये हर मोड़ पर टकराते है |

कुछ रिश्ते दूर होकर भी पास है,

जैसे किसी मुफ़लिस की आस है |

मगर,

तुझमे और मुझमे जाने कैसा रिश्ता है,
तुम अजनबी भी नही,
      मुझे जानते भी नहीं,
हर लम्हा मेरे साथ रहते हो,
     और मुझे पहचानते भी नहीं |

इस रिश्ते को क्या कहूँ,

       तुम ही कुछ बताओ,
या फिर चलो,
  ये फैसला वक़्त पर छोड़ दे |
वो चाहे जिधर,
         इस रिश्ते का मुंह मोड़ दे ||

                                                -अर्पण (19-22 Dec. 1998)











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