Friday 9 November 2012

कुदरत के ताने-बाने

एक तन्हा शाम में, मैं बैठा कुदरत के नज़ारे देख रहा था, देख रहा था कुदरत के ताने-बाने को | मेरे देखते ही देखते कुदरत ने आसमां से एक सांवली सलोनी दुल्हन को उतारा | नई नवेली दुल्हन की तरह वो भी बिल्कुल चुप थी मगर सुन्दर इतनी की उसका वजूद फिज़ा के कण-कण में फ़ैल गया| और धीरे-धीरे ये वजूद फैलता ही गया | फिर कुदरत ने सितारों से उसका आँचल सजाना शुरू किया और न जाने क्या सोचकर चाँद की एक बिंदी भी लगा दी, जिससे उसका रूप और निखर गया |

फिर शुरू हुआ दुल्हे का इंतज़ार !


सबसे पहले रश्मि ने आकर दुल्हन की मांग भरी और परिंदों ने दिल खोलकर मंगल गीत गाये | जैसे जैसे दूल्हा चेहरे पर तेज लिए पास आने लगा, न चाहते हुए भी दुल्हन धीरे धीरे शरमाने लगी | और एक पल ऐसा आया जब वो दुल्हे की नज़रों से बहुत दूर चली गयी | बेचारा दूल्हा ! सारा दिन अपनी दुल्हन के इंतज़ार में जलता रहा | फिर धीरे धीरे निराश होकर, कुदरत के चेहरे की और देखता हुआ वापिस जाने लगा | कुदरत उसी तरह चुपचाप नज़रे झुकाए .......


इधर दूल्हा वापिस मुड़ा और उधर दुल्हन फिर धीरे-धीरे फिजाँ में उतरने लगी| सिर्फ कुछ पलों के लिए दुल्हन का हाथ दुल्हे के हाथ में आया और मैंने फिजाँ में हल्की-हल्की ठंडक महसूस की| जाने ये ठंडी आह दुल्हे के मुंह से निकली थी या दुल्हन के मुंह से, मगर फिर मैंने उनके हाथ एक दुसरे से बिछड़ते देखे |


धीरे-धीरे फिर से कुदरत ने दुल्हन का श्रृंगार शुरू किया, फिर दुल्हे का इंतजार शुरू हुआ, फिर दुल्हन को शरमाना पड़ा, फिर दुल्हे को खाली हाथ जाना पड़ा, जाने कितनी सदियों से कुदरत यही ताना-बाना बुने जा रही है |


मगर कभी-कभी दुल्हन अपना बनाव-सिंगार उतार कर, माथे से चाँद की बिंदी हठाकर, सितारों भरा आँचल सर से उतारकर, ज़ी भर के रोती है | और कभी-कभी तो दूल्हा भी सारा-सारा दिन रोता है |


ये आँसू सभी देखते है, मैं भी, आप भी, यहाँ तक की कुदरत भी, मगर कोई कुछ नहीं कर सकता क्योंकि ये कुदरत के ताने-बाने है |


मगर हाँ ! एक दिन ऐसा हुआ की एक आँसूं इस कागज़ पर आ गिरा, जाने दुल्हन की आँख से निकला था या दुल्हे की आँख से, मगर, थोड़ी देर बाद जो मैंने देखा तो कागज़ पर ये तहरीर उतरी हुई थी |



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कुदरत  ने  बुना   जब   शब  का  ताना - बाना |
हमने   भी  छेड़  दिया,  तेरी  यादों  का  तराना ||

माथे  पर  शब  के   चाँद   की   बिंदी   लगा   दी,
सितारों   ने   शुरू   कर   दिया आँचल  सजाना |

सूरज की पहली किरण मांग में सिन्दूर भर गई,
पक्षियों   ने   शुरू  कर   दिया  शहनाई  बजाना |

सूरज  को  जब  आते  देखा,  सहरा  लगाये  हुए,
न   चाहते   हुए   भी, शब   को   पड़ा   शरमाना |

पहरों  जलता  रहा  दूल्हा, दुल्हन  के इंतजार में.,
आखिर  में  पड़ा,  बेचारे  को  खाली  हाथ जाना |

ये   कैसा   सजना   संवरना,   ये    कैसी    शादी,
एक   का   आना   होता   है,   दूसरे   का  जाना |

समझ  चुका  था   ज़िन्दगी   को,  मौत   को   भी,
नहीं समझ आया तो बस, कुदरत का ताना-बाना|

                                                            -अर्पण 



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