28 June 1999
ईक धुंधली सी तस्वीर यादों में,
और नुमायाँ हो गई बरसातों में |
जिसे कभी ज़ी भर के नहीं देखा,
सिर्फ महसूस किया, उसे आँखों में |
दिन भर दिल के आसपास रही,
दिल में उतर गई रातों में ||
-अर्पण ----------
17 Sep. 99 -20 Feb.2000
नमाज़ पाँच वक़्त |
इश्क हर वक़्त ||
-अर्पण ----------
21 July 1999
तू मेरी तक़दीर है,
रांझे की हीर है |
मेरी आँख से बह रहा,
तेरी आंख का नीर है |
लगती है मीठी-मीठी,
प्यार की कैसी पीर है |
बिना प्यार जो जी रहा,
सबसे बड़ा फ़कीर है |
कर रही है बातें |
तू है कि तस्वीर है ||
-अर्पण
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17 Sep. 99 -20 Feb.2000
नमाज़ पाँच वक़्त |
इश्क हर वक़्त ||
तू एक लम्हा,
तेरी याद हर वक़्त |
चाहते हो जीना,
मरना हर वक़्त |
इश्क़ इक बार,
बेखुदी हर वक़्त |
सुबह, दोपहर, शाम,
तू हर वक़्त |
मेरी हर अभिलाषा,
तुझपे अर्पण हर वक़्त ||
-अर्पण ----------
24 Dec. 2000
रिश्तों को आजमाना |
मतलब तकलीफें पाना ||
प्यार और दोस्ती,
अजीब सा ताना - बाना |
वस्ल मेरा और उनका,
है एक ख़्वाब सुहाना |
भगवान भी होता है,
प्यार किया तब जाना |
हंस के गुजार हर लम्हा,
ज़िन्दगी का क्या ठिकाना ||
-अर्पण ----------
25 Nov. 1999
दुनिया का सबसे बड़ा गम |
अपने प्यार का टूटता दम ||
मानते रहे मोहब्बत को खुदा,
बड़ी गफ़लत में रहे हम |
पैसा, रुतबा ही सब - कुछ,
सामने इनके प्यार है कम |
झूठी - बनावटी शान में रहे,
प्या को तौला हमे शा कम |
प्यार का अपने हश्र जो देखा,
हो गई पत्थर आँख भी नम |
ठुकरा कर सादे प्यार को,
तरसोगे तुम जन्म - जन्म ||
-अर्पण ----------
4 Feb. 2000
यह कैसी मजबूरी है |
पास होकर भी दुरी है ||
वस्ल - फ़राक दोनों बेसब्र,
इश्क़ दोधारी छुरी है |
एहसान चार कंधों का,
आखिर सबकी मजबूरी है |
अदम से दहर के बीच,
पलक झपकने की दूरी है |
नाम तेरा लिखे बिना अर्पण,
तहरीर मेरी अधूरी है ||
-अर्पण ----------
11 March 1999
तुम कुछ मत बोलो |
सिर्फ बंद होंठ खोलो ||
ख़ामोशी से करो बातें,
लफ्जों को मत तोलो |
मैं हूँ बेघर, बंजारा,
दिल के दरवाज़े खोलो |
आत्मा दे देना बदले में,
दिल किसी से जो लो |
पढ़ लूँ तक़दीर अपनी,
बंद मुट्ठी ज़रा खोलो |
ज़िन्दगी ने जगाया बहुत,
मौत कहती है अब सो लो ||
-अर्पण
इश्क़ दोधारी छुरी है |
एहसान चार कंधों का,
आखिर सबकी मजबूरी है |
अदम से दहर के बीच,
पलक झपकने की दूरी है |
नाम तेरा लिखे बिना अर्पण,
तहरीर मेरी अधूरी है ||
-अर्पण ----------
11 March 1999
तुम कुछ मत बोलो |
सिर्फ बंद होंठ खोलो ||
ख़ामोशी से करो बातें,
लफ्जों को मत तोलो |
मैं हूँ बेघर, बंजारा,
दिल के दरवाज़े खोलो |
आत्मा दे देना बदले में,
दिल किसी से जो लो |
पढ़ लूँ तक़दीर अपनी,
बंद मुट्ठी ज़रा खोलो |
ज़िन्दगी ने जगाया बहुत,
मौत कहती है अब सो लो ||
-अर्पण
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