15 jun 1998
इंसानी ज़िन्दगी में कुछ ख़्वाब ऐसे भी है |
जो कभी सच न हो, तभी अच्छा है ||
प्यार बहुत कुछ है आदमी के लिए, माना,
मगर सब - कुछ न बने तभी अच्छा है |
वक़्त का क्या भरोसा कब बदल जाये,
हाल कोई पूछे तो कहना, फ़िलहाल अच्छा है |
अपनी खुशियों को लुटाकर दोनों हाथों से,
दूजों के गम समेटना, कभी-कभी अच्छा है |
जन्म-मरण का साथ महज़ इक ख़्वाब है,
जो जितना साथ निभा दे, उतना अच्छा है |
उनकी ख़ुशी थी कि प्यार 'अर्पण' कर दूँ,
फिर नहीं सोचा, बुरा है या कि अच्छा है ||
-अर्पण
No comments:
Post a Comment