Friday 16 November 2012

वहशीपन


एक   पल  में  कितने  रूप  बदलते   है   लोग  यहाँ |
नक़ाब   पर   नक़ाब   ओढ़े   रहते   है   लोग   यहाँ ||

निकलता   है   प्यार   बाँटने   को   जो   भी   शख्स,
नफरत भरी मुस्कान से स्वागत करते है लोग यहाँ |

मोहब्बत इक नियामत-ए-ख़ुदा*  है, सब  कहते  है,
आशिकों  को  फिर  भी  दीवाना कहते है लोग यहाँ |

झांक  नहीं  पाए,  ठीक  से  अभी,   दिल   में   अपने,
बात  मगर, चाँद  पर  रहने  की  करते  है लोग यहाँ |

दो  सच्चे  प्रेमी  जिन्हें   गुनगुना   भी   नही   सकते,
जीस्त-ए-साज़* पर ऐसे नग्मे  गाते  है  लोग   यहाँ |

जो  वहशीपन  छुपा  है  इनके अपने  दिल में अर्पण,
वैसा   ही  अक्स   औरो  में  देखते   है   लोग    यहाँ ||

                                                       -अर्पण (14 फरवरी 1998) 


नियामत-ए-ख़ुदा = भगवान का तोहफा 
जीस्त-ए-साज़     = ज़िन्दगी का साज़ 




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