मैं, मेरी यादें और यादों में तुम |
मैं इनमे, ये मुझमे हो जाती गुम ||
तुम्हारे बोलने से मिलते है लफ्ज़,
कुछ बोलो क्यूँ बैठी हो गुमसुम |
अच्छे लगते है, चाँद,तारे,हवाएं,बादल,
इन सब से भी मगर, अच्छी तुम |
बहुत फर्क है तुममे और दुनिया में,
दुनिया का हिस्सा न बन जाना तुम |
हर ख़ुशी, हर गम, तेरे दम से,
दोस्त हो ये कि ख़ुद खुदा हो तुम ||
-अर्पण (1 May 1999)
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