Sunday 11 November 2012

सुबह


" सुबह "

सुबह के उजाले की पहली किरण,
मेरे दिल के अंदर तक,
उजाला भर जाती है,

आँखें खोलती हूँ,
तो उजाला, आँखों के रास्ते,
मेरे शरीर के,
कण-कण में फ़ैल जाता है,
और एक ताज़गी भरा अहसास जगाता है |

रात को,
कितने दुःख, कितनी तकलीफें,
कितने गम, कितने अँधेरे,
दामन में भरकर,
साथ ले कर सोती हूँ,

मगर सुबह उठती हूँ,
तो देखती हूँ,
कि,
सारे गम, सारे दुःख, सारी तकलीफें,
मेरे दामन से छिटक कर,
इक तरफ को पड़े,
अभी तक सो रहे है,

और सुबह के सूरज की किरणें,
एक-एक करके आती है,
और उन्हें उठाकर,
मुझसे दूर ले जाती है,
बिल्कुल मेरे एक दोस्त की तरह,

फिर सुबह के हाथों की,
गर्माहट भरी थपकी,
मैं अपने गालों पर,
महसूस करती हूँ,

जैसे कह रही हों -
हर सुबह,
ज़िन्दगी की इक नई शुरुआत है,
हम चाहें तो, ज़िन्दगी को,
कभी भी, कहीं से भी,
शुरू कर सकते है,

इस शुरुआत के लिए,
हमें बस इतना करना होगा |
ज़िन्दगी की खुशियाँ,
पाने के लिए,
पहला कदम, हमें ख़ुद उठाना होगा ||

                                          -अर्पण ( 1 May 1999 )

( ये कविता मैंने अपने एक दोस्त के कहने पर लिखी थी, उसने मुझे बताया की सुबह उसे बहुत अच्छी लगती है, एकदम ताज़गी भरे अहसास की तरह | जबकि रात को कितनी मुसीबतें, कितनी तकलीफें साथ होती है, सब कुछ सोच-सोच कर |  अपनी ज़िन्दगी के बारें में, अपने रिश्तों के बारें में सोच-सोच कर मन बहुत ख़राब होता है मगर हर सुबह इक नई उम्मीद लेकर आती है | ) 



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