तुम नहीं हो तो कुछ भी नहीं है,
है सब - कुछ मगर फिर भी कमी है,
तुम क्या चले गए,कोई पास नहीं आता,
मैं किसी से, कोई मुझसे खुश नहीं है |
तुम ही आ - जा रहे हो |
तुम बहुत याद आ रहे हो ||
आँखें बंद करके बैठा हूँ चुप-चाप,
कोयल भी बहुत चुप - चुप है आज,
उड़ने की कोशिश में फड़फड़ा भर पाये,
मेरी सोच के परिंदे भूल गये परवाज़ |
तन्हाई में बुला रहे हो |
तुम बहुत याद आ रहे हो ||
जहन अज्ञात की तरफ भागा जा रहा है,
मैं दिल को, दिल मुझे समझा रहा है,
आँखें है तो पत्थर, मगर गीली है,
आँसू पानी होकर भी सुखा जा रहा है |
आँसू से धुंधला रहे हो |
तुम बहुत याद आ रहे हो ||
तुमसे ही रोशन थी मेरी सुबह-ओ-शाम,
इस हिज्र में तेरे प्यार को सलाम,
हर दर्द , हर गम भूल जाता था,
आँखें बंद करके जब लेता था तेरा नाम |
रोम - रोम में समा रहे हो |
तुम बहुत याद आ रहे हो ||
-अर्पण (28 मार्च 2000)
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