जब से तुम गए हो,
कुछ भी अच्छा नहीं लगता,
अपना साया भी मुझे,
अब अपना सा नहीं लगता |
मगर हाँ,
तन्हाई से,
इक अजीब सा,
रिश्ता बन गया है इन दिनों,
तुम्हारी सारी बातें,
तुम्हारे सारे किससे,
इनसे कहता-सुनता हूँ मैं,
ये भी अच्छे दोस्त की तरह,
मेरी सारी बातें सुनती है,
कभी-कभी तो,
सवाल भी करती है,
तुम्हारे बारे में,
इनसे बातें करना,
इनके साथ वक़्त गुजारना,
अच्छा लगता है,
कभी-कभी जी चाहता है,
इसे गले से लगा लूँ,
कि क्यूँ ये मुझे,
इतनी अच्छी लगती है,
कभी-कभी घुमने निकलता हूँ,
तो इसे भी साथ ले लेता हूँ,
लेकिन जब भी बाहर निकलता हूँ,
हर बार लोगों की आँखों में,
इक सवाल नज़र आता है,
और एक दिन यही सवाल,
लोगों की आँखों से निकलकर,
इसकी ज़बान पर आ गया -
क्या रिश्ता है, तुम्हारा-उसका ?
बड़े इत्मिनान से,
उसकी आँखों में आँखें डालकर,
मैंने कहा -
मेरा और उसका वही रिश्ता है |
जो मेरा और तुम्हारा है ||
-अर्पण (16 अप्रैल 1999)
कुछ भी अच्छा नहीं लगता,
अपना साया भी मुझे,
अब अपना सा नहीं लगता |
मगर हाँ,
तन्हाई से,
इक अजीब सा,
रिश्ता बन गया है इन दिनों,
तुम्हारी सारी बातें,
तुम्हारे सारे किससे,
इनसे कहता-सुनता हूँ मैं,
ये भी अच्छे दोस्त की तरह,
मेरी सारी बातें सुनती है,
कभी-कभी तो,
सवाल भी करती है,
तुम्हारे बारे में,
इनसे बातें करना,
इनके साथ वक़्त गुजारना,
अच्छा लगता है,
कभी-कभी जी चाहता है,
इसे गले से लगा लूँ,
कि क्यूँ ये मुझे,
इतनी अच्छी लगती है,
कभी-कभी घुमने निकलता हूँ,
तो इसे भी साथ ले लेता हूँ,
लेकिन जब भी बाहर निकलता हूँ,
हर बार लोगों की आँखों में,
इक सवाल नज़र आता है,
और एक दिन यही सवाल,
लोगों की आँखों से निकलकर,
इसकी ज़बान पर आ गया -
क्या रिश्ता है, तुम्हारा-उसका ?
बड़े इत्मिनान से,
उसकी आँखों में आँखें डालकर,
मैंने कहा -
मेरा और उसका वही रिश्ता है |
जो मेरा और तुम्हारा है ||
-अर्पण (16 अप्रैल 1999)
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