Tuesday 13 November 2012

दो जून रोटी !


16 Aug 1998 

इंसान,   इंसान   को    मारता    रहा |
शैतान  खड़ा  तमाशा   देखता    रहा ||

मन्दिर - मस्जिद  को लेकर लड़ मरे,
धर्म   हर   पल   बदनाम  होता   रहा |

परिवार   के   रिश्ते   निभा   न  सका,
भगवान    से    नाता    जोड़ता    रहा |

अफवाहों  में  उड़  गया, ज्यों  तिनका,
अपने ही भाइयों का गला काटता रहा |

इंसान  मौत  से  डरता  होता था  कभी,
अब मौत को इंसाने-खौफ सताता रहा |

धर्म   के   नाम   पर   रूपये   लुटा   दिए,
बेसहारों को सहारा देने से कतराता रहा |

जिस  माँ-बाप  ने  पाला  उसको उम्र भर,
दो  जून  रोटी  वास्ते  उन्हें तरसाता रहा ||

                                                    -अर्पण

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