न जाने, क्या है तुझमे, बार - बार,
तुम्हारी तरफ, लौट आता हूँ मैं |
कितना ही आपस में झगड़ लें हम,
कितना ही एक-दूजे से रूठ जाए हम,
कितना ही, मैं खा लूँ कसमें,
कि एक - दूजे से नहीं मिलेंगे हम,
कसमें भूल जाता हूँ मैं |
फिर लौट आता हूँ मैं ||
हर नापसंद बात पर तुम्हे डांटना,
मेरी हर डांट पर तुम्हारे आँसू बहना,
वो हर पल दुआएँ करना मिलने की,
और जब भी मिलना तो लड़ना-झगड़ना,
झगड़े भूल जाता हूँ मैं |
फिर लौट आता हूँ मैं ||
एक-दुसरे से बिल्कुल अलग है हम,
तुम उतर हो, तो मैं दक्षिण हूँ,
कैसे एक - दुसरे से मिल जाएँ हम,
तुम पूरब हो तो मैं पश्चिम हूँ,
दिशाएं भूल जाता हूँ मैं |
फिर लौट आता हूँ मैं ||
-अर्पण (31 Aug. 1999 )
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